उच्चैठ दुर्गास्थान बिहार के अति प्राचीन मंदिरों में से एक है जहां स्वयं विश्व प्रसिद्ध विद्वान कालिदास को मां छिन्नमस्तिका से ज्ञान प्राप्त हुआ था। इस स्थान के बारे में हिंदुओं के कई पुराने और ग्रंथों में वर्णित है। इस पोस्ट में इस ऐतिहासिक स्थान के बारे में जानकारियां साझा किया जा रहा है।
उच्चैठ दुर्गास्थान बिहार के मधुबनी जिले में बेनीपट्टी के पास है। वैसे तो यहां हमेशा भक्तों का तांता लगा रहता है परंतु नवरात्रि के समय यहां काफी ज्यादा भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है जो कि देखते ही बनती है। मंदिर के नजदीक विश्व प्रसिद्ध विद्वान कालिदास पीठ स्थित है। जहां पर कालिदास विश्वविद्यालय का निर्माण किया गया है। इस स्थान पर अष्टावक्र जैसे कई अन्य ऋषि मुनियों का भी आगमन हुआ है।
उच्चैठ दुर्गास्थान बिहार के मधुबनी जिले में बेनीपट्टी के पास है। वैसे तो यहां हमेशा भक्तों का तांता लगा रहता है परंतु नवरात्रि के समय यहां काफी ज्यादा भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है जो कि देखते ही बनती है। मंदिर के नजदीक विश्व प्रसिद्ध विद्वान कालिदास पीठ स्थित है। जहां पर कालिदास विश्वविद्यालय का निर्माण किया गया है। इस स्थान पर अष्टावक्र जैसे कई अन्य ऋषि मुनियों का भी आगमन हुआ है।
महा विद्वान कालिदास इस स्थान से जुड़ी रोचक कहानी
आपने महान विद्वान कालिदास के जीवन के बारे में अवश्य पढ़ा होगा। जिस समय उनके पास ज्ञान नहीं था उस समय महारानी विद्योत्तमा ने उन्हें शादी के बाद घर से निकाल दिया था।
इसके बाद कालिदास काशी से भटकते हुए उच्चैठ आ गए। जीवन यापन के लिए और पेट भरने के लिए उन्होंने दुर्गा स्थान के नजदीक एक विश्वविद्यालय में रसोइए की नौकरी पकड़ ली। काफी समय बीत आ गया और कालिदास वही विश्वविद्यालय में रसोई का काम करते रहे। उस समय भयंकर बाढ़ आया। अभी भी या जगह बाढ़ पीड़ित है यहां ग्रामीणों को हर साल बाढ़ का सामना करना पड़ता है। उस समय जब भयंकर बाढ़ आया तो। लगभग वहां का सारा इलाका जलामय हो चुका था। सभी छात्र और शिक्षक वही विश्वविद्यालय में सुरक्षित थे। क्योंकि वह एकमात्र स्थान यह सुरक्षित रह गया था या दूसरा छिन्मस्तिका का मंदिर। बाढ़ का कारण विश्वविद्यालय और मंदिर के बीच थुमानी धार थी जोकि उफान पर था। किसी तरह दिन बीता जब शाम हुई तो शिक्षकों और छात्रों में बहस शुरू हुई। ऐसे समय में मंदिर में माता की संध्या आरती कौन करने जाएगा। बहस काफी समय तक चला परंतु निर्णायक साबित नहीं हो पाया। कोई भी छात्र या शिक्षक अपने जीवन को संकट में नहीं डालना चाहता था। अंत में सबक नजर कालिदास पर पड़ी। उन्होंने सोचा क्यों ना इसी मूर्ख को माता की मंदिर में संध्या आरती के लिए भेजें। अगर किसी दुर्घटना से इसे कुछ हो भी जाएगा तो संसार से एक मूर्ख कम हो जाएगा। ऐसा विचार विमर्श करके कालिदास को बुलाया गया और उन्हें वहां जाने के लिए कहा गया। उस समय कालिदास जो कि बिल्कुल अज्ञान थे उन्होंने तुरंत हामी भर दी। सब ने पूछा तुम जाओगे तो हमें कैसे पता चलेगा कि तुमने माता की संध्या आरती कर दी है। तो कालिदास ने कहा मैं अपने हाथों में यह कालिख (राख) लगा लेता हूं और वही कहीं पर निशान लगा दूंगा इस प्रमाण के लिए कि मैं वहां गया था। ऐसा कह कर कालिदास ने अपने हाथों में चूल्हे से निकालकर कालिख अपने हाथों में लगा लिया। और पानी में तैरते हुए किसी तरह मंदिर पहुंच गए। क्योंकि उन्हें ज्ञान नहीं था की संध्या आरती कैसे होती है परंतु उन्हें जैसा आया उन्होंने कर दिया। अंत में उन्हें ध्यान आया कि यह का लेख मैं कहां लगाऊं कि लोगों को पता चले कि मैं यहां आया था। इधर-उधर देखने के बाद उन्होंने सोचा अगर मैं मंदिर के बाहर कहीं यह निशान लगा था वह तो पानी से धुल जाएगा। और लोग फिर मेरी बात का विश्वास नहीं करेंगे।
आखिरकार कालिदास ने निर्णय किया की क्यों ना इस कालिक को मूर्ति पर ही लगा दी जाए। क्योंकि उस समय वहां पानी का पहुंचना दुर्लभ था। ऐसा सोच कर कालिदास ने अपने हाथों पर लगी कालीख को छिन्मस्तिका माता के मुंह पर लगाने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाए। माता तुरंत प्रकट हुई और उन्होंने कालिदास का हाथ पकड़ लिया और कहां "मैं तेरी भक्ति से प्रसन्न हुई मांग क्या वर मांगना चाहता है" कालिदास ने तुरंत मां के पैर पकड़ लिए और कहा आपको तो सब पता है मेरी यह दुर्दशा मेरी मूर्खता के कारण ही है। उस समय माता ने कालिदास से कहा आज रात तुम जितनी किताबों के पन्ने पलट दोगे तुम्हें इतना ज्ञान मिल जाएगा ऐसा कह कर मां अंतर्ध्यान हो गई। कालिदास वापस किसी तरह विश्व विद्यालय पहुंचा। उसे देख कर वहां मौजूद सबको अचरज हुआ। रात के वक्त कालिदास विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में जाकर बैठ गए। सारी रात वहां मौजूद सभी पुस्तकों के पन्ने पलट डालें। सुबह हुई विश्वविद्यालय का समय शुरू हुआ सभी छात्र अपने कक्ष में अध्ययन करने लगे। उस दिन कालिदास जिस कक्षा से निकलते वहां छात्रों के त्रुटियों पर हंसने लगते। यह देख सब ने सोचा, लगता है कल की घटना के बाद कालिदास पागल हो गया है। शाम को विश्वविद्यालय के प्रधानाध्यपक ने कालिदास को बुलाया और उनसे इसका कारण पूछा। कालिदास ने एक-एक करके सभी छात्रों के नाम लिए उनके त्रुटियों को बताया। यह सुनकर प्रधानाध्यापक को बड़ा आश्चर्य हुआ उन्होंने एक एक कर कई प्रश्न किए परंतु कालिदास ने सभी प्रश्नों के सही उत्तर दिए। अंत में कालिदास ने एक प्रश्न प्रधानाध्यपक से भी पूछ लिया जिसका जवाब उनके पास नहीं था। उन्होंने कालिदास के पैर पकड़ लिया। क्योंकि उनको ज्ञात हो गया था की यह कोई आम इंसान नहीं है यह कोई महान विद्वान है। इस उपरांत वहां उन्होंने अपने कई पुस्तकों का सफल संपादन किया। और एक समय आया जब विश्व में उनकी ख्याति बन गई। आज कुछ विश्वविद्यालय का नाम कालिदास विश्वविद्यालय है।
यह ऐतिहासिक स्थल अब तक है गुमनाम
यह के प्राचीन मंदिर बिहार प्रशासन के द्वारा अब तक गुमनाम है यहां तक की बिहार पर्यटन विभाग द्वारा भी इस जगह के लिए किसी तरह का कोई कार्य नहीं हुआ है। हालांकि कालिदास पीठ पर निर्माण कार्य पिछले कुछ सालों से चल कर रहा है। परंतु हालत ज्यों की त्यों हैं।
इसके बाद कालिदास काशी से भटकते हुए उच्चैठ आ गए। जीवन यापन के लिए और पेट भरने के लिए उन्होंने दुर्गा स्थान के नजदीक एक विश्वविद्यालय में रसोइए की नौकरी पकड़ ली। काफी समय बीत आ गया और कालिदास वही विश्वविद्यालय में रसोई का काम करते रहे। उस समय भयंकर बाढ़ आया। अभी भी या जगह बाढ़ पीड़ित है यहां ग्रामीणों को हर साल बाढ़ का सामना करना पड़ता है। उस समय जब भयंकर बाढ़ आया तो। लगभग वहां का सारा इलाका जलामय हो चुका था। सभी छात्र और शिक्षक वही विश्वविद्यालय में सुरक्षित थे। क्योंकि वह एकमात्र स्थान यह सुरक्षित रह गया था या दूसरा छिन्मस्तिका का मंदिर। बाढ़ का कारण विश्वविद्यालय और मंदिर के बीच थुमानी धार थी जोकि उफान पर था। किसी तरह दिन बीता जब शाम हुई तो शिक्षकों और छात्रों में बहस शुरू हुई। ऐसे समय में मंदिर में माता की संध्या आरती कौन करने जाएगा। बहस काफी समय तक चला परंतु निर्णायक साबित नहीं हो पाया। कोई भी छात्र या शिक्षक अपने जीवन को संकट में नहीं डालना चाहता था। अंत में सबक नजर कालिदास पर पड़ी। उन्होंने सोचा क्यों ना इसी मूर्ख को माता की मंदिर में संध्या आरती के लिए भेजें। अगर किसी दुर्घटना से इसे कुछ हो भी जाएगा तो संसार से एक मूर्ख कम हो जाएगा। ऐसा विचार विमर्श करके कालिदास को बुलाया गया और उन्हें वहां जाने के लिए कहा गया। उस समय कालिदास जो कि बिल्कुल अज्ञान थे उन्होंने तुरंत हामी भर दी। सब ने पूछा तुम जाओगे तो हमें कैसे पता चलेगा कि तुमने माता की संध्या आरती कर दी है। तो कालिदास ने कहा मैं अपने हाथों में यह कालिख (राख) लगा लेता हूं और वही कहीं पर निशान लगा दूंगा इस प्रमाण के लिए कि मैं वहां गया था। ऐसा कह कर कालिदास ने अपने हाथों में चूल्हे से निकालकर कालिख अपने हाथों में लगा लिया। और पानी में तैरते हुए किसी तरह मंदिर पहुंच गए। क्योंकि उन्हें ज्ञान नहीं था की संध्या आरती कैसे होती है परंतु उन्हें जैसा आया उन्होंने कर दिया। अंत में उन्हें ध्यान आया कि यह का लेख मैं कहां लगाऊं कि लोगों को पता चले कि मैं यहां आया था। इधर-उधर देखने के बाद उन्होंने सोचा अगर मैं मंदिर के बाहर कहीं यह निशान लगा था वह तो पानी से धुल जाएगा। और लोग फिर मेरी बात का विश्वास नहीं करेंगे।
आखिरकार कालिदास ने निर्णय किया की क्यों ना इस कालिक को मूर्ति पर ही लगा दी जाए। क्योंकि उस समय वहां पानी का पहुंचना दुर्लभ था। ऐसा सोच कर कालिदास ने अपने हाथों पर लगी कालीख को छिन्मस्तिका माता के मुंह पर लगाने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाए। माता तुरंत प्रकट हुई और उन्होंने कालिदास का हाथ पकड़ लिया और कहां "मैं तेरी भक्ति से प्रसन्न हुई मांग क्या वर मांगना चाहता है" कालिदास ने तुरंत मां के पैर पकड़ लिए और कहा आपको तो सब पता है मेरी यह दुर्दशा मेरी मूर्खता के कारण ही है। उस समय माता ने कालिदास से कहा आज रात तुम जितनी किताबों के पन्ने पलट दोगे तुम्हें इतना ज्ञान मिल जाएगा ऐसा कह कर मां अंतर्ध्यान हो गई। कालिदास वापस किसी तरह विश्व विद्यालय पहुंचा। उसे देख कर वहां मौजूद सबको अचरज हुआ। रात के वक्त कालिदास विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में जाकर बैठ गए। सारी रात वहां मौजूद सभी पुस्तकों के पन्ने पलट डालें। सुबह हुई विश्वविद्यालय का समय शुरू हुआ सभी छात्र अपने कक्ष में अध्ययन करने लगे। उस दिन कालिदास जिस कक्षा से निकलते वहां छात्रों के त्रुटियों पर हंसने लगते। यह देख सब ने सोचा, लगता है कल की घटना के बाद कालिदास पागल हो गया है। शाम को विश्वविद्यालय के प्रधानाध्यपक ने कालिदास को बुलाया और उनसे इसका कारण पूछा। कालिदास ने एक-एक करके सभी छात्रों के नाम लिए उनके त्रुटियों को बताया। यह सुनकर प्रधानाध्यापक को बड़ा आश्चर्य हुआ उन्होंने एक एक कर कई प्रश्न किए परंतु कालिदास ने सभी प्रश्नों के सही उत्तर दिए। अंत में कालिदास ने एक प्रश्न प्रधानाध्यपक से भी पूछ लिया जिसका जवाब उनके पास नहीं था। उन्होंने कालिदास के पैर पकड़ लिया। क्योंकि उनको ज्ञात हो गया था की यह कोई आम इंसान नहीं है यह कोई महान विद्वान है। इस उपरांत वहां उन्होंने अपने कई पुस्तकों का सफल संपादन किया। और एक समय आया जब विश्व में उनकी ख्याति बन गई। आज कुछ विश्वविद्यालय का नाम कालिदास विश्वविद्यालय है।
यह ऐतिहासिक स्थल अब तक है गुमनाम
यह के प्राचीन मंदिर बिहार प्रशासन के द्वारा अब तक गुमनाम है यहां तक की बिहार पर्यटन विभाग द्वारा भी इस जगह के लिए किसी तरह का कोई कार्य नहीं हुआ है। हालांकि कालिदास पीठ पर निर्माण कार्य पिछले कुछ सालों से चल कर रहा है। परंतु हालत ज्यों की त्यों हैं।
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