क्यों इतनी मान्यता है तिलपत के सूरदास मंदिर की - News TV India
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क्यों इतनी मान्यता है तिलपत के सूरदास मंदिर की


हरियाणा के फरीदाबाद में स्थित तिलपत का इतिहास काफी प्राचीन है और वहां का सूरदास मंदिर भी लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। आज हम बताने वाले हैं सूरदास मंदिर से जुड़े महत्वपूर्ण जानकारियां।

तिलपत गांव का प्राचीन इतिहास

तिलपत का इतिहास काफी ही प्राचीन है। यहां पांडवों का भी प्रिय गांव रहा है। बात उस समय का है जब महाभारत से पूर्व संधि के लिए भगवान श्री कृष्ण को पांडवों का शांति दूत बनाकर दुर्योधन के पास भेजा गया था। उस समय संधि प्रस्ताव में 5 गांव की मांग की गई थी। जिनमें श्रीपत, बागपत, सोनीपत, पानीपत के साथ-साथ तिलपत भी था। परंतु उस समय दुर्योधन ने उन्हें इससे में सुई की नोक के बराबर भी जमीन देने से मना कर दिया। जिसकी वजह से पांडवों और कौरवों में महाभारत जैसा भयानक युद्ध हुआ।

कैसे हुई ‌सुरदास मंदिर की स्थापना...

बताया जाता है कि सन 1930 में उत्तराखंड से आए संत सूरदास तिलपत आए। प्राप्त जानकारी के मुताबिक संत सूरदास मैं कई अद्भुत शक्तियां थी। वह भगवान श्री कृष्ण के परम भक्तों थे। और सदैव इधर उधर भ्रमण करते रहते थे। जब उनका आगमन ग्राम तिलपत में हुआ। उस समय वहां भयंकर महामारी फैली हुई थी। महामारी मे कई लोग मारे जा चुके थे। और महामारी का प्रकोप दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा था। परंतु जैसे ही उनका पैर वहां पड़ा महामारी कुछ ही दिनों में समाप्त हो गई और लोग सुखी संपन्न हो गए। इसके कुछ समय के बाद संत सूरदास गांव से चले गए। बताया जाता है कि उनके अंतिम संस्कार के बाद ग्रामीणों ने संत सूरदास की समाधि का निर्माण कराया और साथ ही भगवान श्री कृष्ण का भी मंदिर बनाया गया। जहां आज भी भगवान श्री कृष्ण की पूजा अर्चना पूरी नियम पूर्वक की जाती है। अब दूरदराज से लोग बाबा के समाधि दर्शन के लिए आते हैं। और सब के आस्था का केंद्र बन चुका है।

राजनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है यह गांव

तिलपत गांव को राजनीतिक दृष्टि से भी पहचान तब मिली जब माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के द्वारा आयोजित आदर्श ग्राम योजना के तहत फरीदाबाद के सांसद व माननीय केंद्रीय राज्य मंत्री कृष्णपाल गुर्जर ने तिलपत को गोद लिया। इसके बाद यहां की तरक्की अब देखने योग्य हैं। हाल ही में समाधि के पास एक बड़े भव्य पार्क का भी निर्माण कराया गया है। साथ ही साथ मंदिर को और भव्य बनाने का कार्य प्रगति पर है। यह मंदिर पल्ला नहर पर स्थित है। और कितना प्रसिद्ध है यह चर्चा हम कर चुके हैं। तो यहां आना काफी सरल है, आप भी यहां आकर समाधि दर्शन का फल प्राप्त कर सकते हैं।

भ्रांतियां

तिलपत स्थित बाबा सूरदास मंदिर के बारे में कई भ्रांतियां भी है कई लोग यह सोचते है कि यह समाधि प्रसिद्ध विद्वान महान कवि सूरदास की है। जबकि यह समाधि संत सूरदास जोकि उत्तराखंड से आए थे ये अलग हैं। संत सूरदास जी को श्री श्री किशोरी शरण महाराज के नाम से भी जाना जाता है।



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